कुछ पल जगजीत सिंह के नाम

अक्टूबर 17, 2006

आप से गिला आप की क़सम


आप से गिला आप की क़सम
सोचते रहें कर न सके हम
उस की क्या ख़ता लदवा है गम़
क्यूं गिला करें चारागर से हम

ये नवाज़िशें और ये करम
फ़र्त-व-शौक़ से मर न जाएं हम

खेंचते रहे उम्र भर मुझे
एक तरफ़ ख़ुदा एक तरफ़ सनम

ये अगर नहीं यार की गली
चलते चलते क्यूं स्र्क गए क़दम

1 टिप्पणी »

  1. words r not visible do the needful as early as possible…………

    take it as a serious one

    टिप्पणी द्वारा shalini — दिसम्बर 18, 2006 @ 5:38 अपराह्न | प्रतिक्रिया


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