वो ख़त के पुर्जे उडा रहा था,
हवाओं का रूख दिखा रहा था,
कुछ और भी हो गया नुमाया,
मैं अपना लिखा मिटा रहा था,
उसी का इमा बदल गया है,
कभी जो मेरा खुदा रहा था,
वो एक दिन एक अजनबी को,
मेरी कहानी सुना रहा था,
वो उम्र कम कर रहा था मेरी,
मैं साल अपने बढ़ा रहा था,
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