तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ू न हुई वो सई-ए-क़रम फ़रमा भी गए
इस सई-ए-क़रम का क्या कहिये बहला भी गए तड़पा भी गए
हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर ना सके कुछ कह ना सके कुछ सुन ना सके
यां हम ने ज़बां ही खोले थी वां आँख झुकी शरमा भी गए
आशुफ़्तगी-ए-वहशत की क़सम हैरत की क़सम हसरत की क़सम
अब आप कहें कुछ या ना कहें हम राज़-ए-तबस्सुम पा भी गए
रूदाद-ए-ग़म-ए-उल्फ़त उन से हम क्या कहते क्योंकर कहते
एक हर्फ़ ना निकला होठों से और आंख में आंसू आ भी गए
अरबाब-ए-जुनूं पे फ़ुरकत में अब क्या कहिये क्या क्या गुज़रा
आये थे सवाद-ए-उल्फ़त में कुछ खो भी गए कुछ पा भी गए
ये रंग-ए-बहार-ए-आलम है क्या फ़िक़्र है तुझ को ऐ साक़ी
महफ़िल तो तेरी सुनी ना हुई कुछ उठ भी गए कुछ आ भी गए
इस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में इस अंजुमन-ए-इरफ़ानी में
सब जाम-ब-कफ़ बैठे ही रहे हम पी भी गए छलका भी गए
Unsung lines in Bold Italic
Lyrics: Majaz
Singer: Jagjit Singh
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