ये फ़ासले तेरी
गलियों के हमसे तय न हुए -२
हज़ार बार रुके हम
हज़ार बार चले -२
ना जाने कौन सी मट्टी
वतन की मट्टी थी
नज़र में धूल, जिगर
में लिये गुबार चले
हज़ार बार रुके हम
हज़ार बार चले -२
ये कैसी सरहदें उलझी
हुई हैं पैरों में -२
हम अपने घर की तरफ़ उठ
के बार बार चले
हज़ार बार रुके हम
हज़ार बार चले -२
ना रास्ता कहीं ठहरा,
ना मंजिलें ठहरी -२
ये उम्र उडती हुई
गर्द में गुज़ार चले
हज़ार बार रुके हम
हज़ार बार चले -२
ये फ़ासले तेरी
गलियों के हमसे तय न हुए
हज़ार बार रुके हम
हज़ार बार चले