कुछ पल जगजीत सिंह के नाम

अक्टूबर 25, 2007

कृष्ण है श्रद्धा कृष्ण है भक्ती कृष्ण है विश्वास


कृष्ण है श्रद्धा कृष्ण है भक्ती कृष्ण है विश्वास |
कृष्ण को बेंद सुमिरन कर ले कृष्ण है तेरे पास ||

जब जब सुमिरा हरी भक्तो ने उनके पास वो आया ,
हर संकट को हरी ने हर के मन सबको हर्षाया |
सच्चे भक्तो के पापों का पल में करता नाश ||

श्रद्धा से भक्ती है मिलाती भक्ती से भगवान,
कर इसका विश्वास रे प्राणी गीता का है गयांन |
‘दास नारायण ‘ शरण तुम्हारी पूरी कर दो आस ||

तुम करूणा के सागर हो प्रभु


तुम करूणा के सागर हो प्रभु,
मेरी गागर भर दो |
थके पांव है दूर गावं है ,
अब तो कृपा कर दो |

क्लेश-द्वेष से भरा ये मन है ,
मैला मेरा तन है |
तुम कृपाला दीनदयाला,
तुमसे ही जीवन है |
इस तन -मन को उपवन करने ,
का वरदान अमर दो |

याचक बनकर खड़ा हूँ द्वारे ,
दोनों हाथ मैं जोड़े |
परमपिता तुमको मैं जानू ,
पिता न बालक छोडे!
‘दास नारायण ‘ करे अर्चना ,
मेरी पीड़ा हर लो ||

जीवन की प्रभु सांझ भई है


जीवन की प्रभु सांझ भई है
अब तो शरण में ले लो !
जगत के स्वामी मेरे प्रभुवर
अपने चरन में ले लो!!
इस देही के मालिक तुम हो,
तुमको सदा भुलाया !
भरी जवानी मोल न जाना ,
सदा तुम्हे बिसराया !!
तेरे चरन ही मान सरोवार
अपने तरन में में ले लो !!१!!

छोड़ के कंचन पाकर पीतल
अंग ही उसे लगाया !!
मृगतृष्णा की पयास में भटका ,
मन मेरा भरमाया !!
‘दास नारायण’ भिक्षा मांगे
अपनी धरण में ले लो !!२!!

सुमिरन कर के चारों बेला


सुमिरन कर के चारों बेला !
जीवन है सुख – दुःख का मेला !!

हरि को काहे मनवा भूला !
हरि तो है सावान का झूला !
काहे को तू रहे अकेला !!१!!

इस मेले में दर्द खिलौना !
ये मेला है इक मृगछौना !
जो सुखी है माटी का ढेला !!२!!

प्रभु का जो करते हैं सुमिरन !
सुमिरन से जीवन है उपवन !
‘दास नारायण’ छोड़ झमेला !!३!!

तुम पीर हरो ब्रज के स्वामी


तुम पीर हरो ब्रज के स्वामी !
चलते-चलते पग मेरे हारे ,
कारण कौन भुलाये !
सदा रही है आस तुम्हारी ,
मारग कौन बताये !
कभी गिरा न भक्त वो तेरा
तुमने बांह जो थामी !!

चैन – रैन निस दिन खोवत है ,
नयनन आंसू आवे !
शमा करो अपराध हमारा,
बालक भटक ही जावे !
‘दास’ नारायण मुख न बोले ,
तुम हो अंतर्यामी !!

अक्टूबर 1, 2007

श्याम नाम रस बरसे रे मनवा


श्याम नाम रस बरसे रे मनवा,
श्याम नाम रस बरसे ||
सावन भादो जस हिरयाली,
तस् हिरयाली तन में |
जस बसंत में फुलवा खिलते,
तस फुलवारी मन में ||
निरख -निरख प्रभु श्याम छबि को,
मनवा मोरा हरषे ||१||

श्याम नाम में मन अस भीज़ा,
नदिया तट हो जैसे |
श्याम बिना है जीवन ऐसो ,
जल बिन मीन हो वेसे |
‘दास नारायण’ प्रभु चरनन को,
बार-बार मन तरसे ||२||

सितम्बर 28, 2007

पतित पवन नाम तीहारो


पतित पवन नाम तीहारो,
मुझको पावन कर दो |
पतझड़ जैसा जीवन मेरा,
उसको सावन कर दो |

चरण पड़ा हूँ विनती सुन लो,
पाप-ताप को हरना!
श्रद्धा तुम पर मेरी प्रभु जी
मान हमारा रखना |
कुलषित तन मन निर्मल होवे ,
ऐसा मुझको वर दो ||

पतित हुए हैं करम हमारे ,
अपना मुझे बना लो |
करे याचना ‘दास नारायण ‘
मुझको तुम अपना लो !
हे ! रघुनन्दन – बनो सहायक
मन में आनंद भर दो ||

सितम्बर 22, 2007

श्याम चरण मन भाये


श्याम चरण मन भाये |
उठत-बैठत जागत-सोवत,
हरि छबि सदा सुहाये |
इत-उत- पल-पल छिन-छिन देखूँ,
चंद्र रूप मुस्काये |
बंद करूँ जो अंखियन आपन,
हिय नैनन दरषाये ||१||

अंग-अंग ते रोम-रोम में,
श्यामल छबि हरषाये |
‘दास नारायण’ जनम सुफल भयो,
दोउ लोक बन जाये ||२||

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