कुछ पल जगजीत सिंह के नाम

अक्टूबर 25, 2007

हर एक घर में दीया भी जले अनाज भी हो


हर एक घर में दीया भी जले अनाज भी हो,
अगर न हो कही ऐसा तो एहतराज़ भी हो,

हुकुमतो को बदलना तो कुछ मुहाल नही,
हकुमाते जो बदलता है वह समाज भी हो,

रहेगी कब तलक वादों में क़ैद खुशहाली,
हर एक बार ही कल क्यों कभी आज भी हो,

न करते शोर शराबा तो और क्या करते,
तुम्हारे शहर में कुछ और कम काज भी हो,

बोलो राम जय जय राम


बोलो राम जय जय राम,
मुनिमन रंजन भव भये भंजन,
असुर निकंदन सीता राम,
पतित उद्धारण जग जन तारण,
नित्ये निरंजन सीता राम,
दशरत नंदन सुर मुनि वंदन,
परेय्पप वंदन सीता राम,
जग सुख कारण जग जन पालन,
संतन जीवन सीता राम,
सत्ये सनातन मंगल कारन,
सगुण निरंजन सीता राम,
राम ही पावन अति मन भावन,
नर नारायण सीता राम,

जय रघुनन्दन जय सिया राम


जय रघुनन्दन जय सिया राम,
भज मन प्यारे जय सिया राम,
आदि राम अनंत है राम,
सत चित और अनंत है राम,
हनुमान के स्वामी राम,
दीनन के दुःख हारी राम,
मर्यादा पुर्शोतम राम,
पुरान ब्रम्ह सनातन राम,
तुलसी सुत तुलसी के राम,
करुना कर भक्तो के राम,
जय सिया राम जय जय सिया राम,

जन्म सफल होगा बन्दे


बोलो राम जय जय राम,
जन्म सफल होगा बन्दे,
मन में राम बसा ले,
हे राम नाम के मोती को,
सांसो की माला बना ले,
राम पतित पवन करुनाकर,
और सदा सुख दाता,
सरस सुहावन अति मनभावन,
राम से प्रीत लगा ले,
मन में राम बसा ले,
मोह माया है झूटा बन्धन,
त्याग उसे तू प्राणी,
राम नाम की ज्योत जला कर,
अपना भाग जगा ले,
मन में राम बसा ले,
राम भजन में डूब के अपनी,
निर्मल कर ले काया,
राम नाम से प्रीत लगा के,
जीवन पर लगा ले,

वो कौन है दुनिया में जिसे गम नहीं होता


वो कौन है, दुनिया में जिसे, गम नहीं होता,
किस घर में खुशी होती है, मातम नहीं होता,

ऐसे भी हैं, दुनिया में जिन्हें, गम नहीं होता,
एक गम हैं हमारा, जो कभी कम नहीं होता,

क्या सुरमा भरी, आंखों से, आंसू नहीं गिरते,
क्या मेहंदी लगे, हाथों से, मातम नहीं होता,

कुछ और भी, होती है, बिगाड़ने की अदाएं,
बनने मी सवारने मे, ये आलम नहीं होता,

कृष्ण है श्रद्धा कृष्ण है भक्ती कृष्ण है विश्वास


कृष्ण है श्रद्धा कृष्ण है भक्ती कृष्ण है विश्वास |
कृष्ण को बेंद सुमिरन कर ले कृष्ण है तेरे पास ||

जब जब सुमिरा हरी भक्तो ने उनके पास वो आया ,
हर संकट को हरी ने हर के मन सबको हर्षाया |
सच्चे भक्तो के पापों का पल में करता नाश ||

श्रद्धा से भक्ती है मिलाती भक्ती से भगवान,
कर इसका विश्वास रे प्राणी गीता का है गयांन |
‘दास नारायण ‘ शरण तुम्हारी पूरी कर दो आस ||

तुम करूणा के सागर हो प्रभु


तुम करूणा के सागर हो प्रभु,
मेरी गागर भर दो |
थके पांव है दूर गावं है ,
अब तो कृपा कर दो |

क्लेश-द्वेष से भरा ये मन है ,
मैला मेरा तन है |
तुम कृपाला दीनदयाला,
तुमसे ही जीवन है |
इस तन -मन को उपवन करने ,
का वरदान अमर दो |

याचक बनकर खड़ा हूँ द्वारे ,
दोनों हाथ मैं जोड़े |
परमपिता तुमको मैं जानू ,
पिता न बालक छोडे!
‘दास नारायण ‘ करे अर्चना ,
मेरी पीड़ा हर लो ||

जीवन की प्रभु सांझ भई है


जीवन की प्रभु सांझ भई है
अब तो शरण में ले लो !
जगत के स्वामी मेरे प्रभुवर
अपने चरन में ले लो!!
इस देही के मालिक तुम हो,
तुमको सदा भुलाया !
भरी जवानी मोल न जाना ,
सदा तुम्हे बिसराया !!
तेरे चरन ही मान सरोवार
अपने तरन में में ले लो !!१!!

छोड़ के कंचन पाकर पीतल
अंग ही उसे लगाया !!
मृगतृष्णा की पयास में भटका ,
मन मेरा भरमाया !!
‘दास नारायण’ भिक्षा मांगे
अपनी धरण में ले लो !!२!!

सुमिरन कर के चारों बेला


सुमिरन कर के चारों बेला !
जीवन है सुख – दुःख का मेला !!

हरि को काहे मनवा भूला !
हरि तो है सावान का झूला !
काहे को तू रहे अकेला !!१!!

इस मेले में दर्द खिलौना !
ये मेला है इक मृगछौना !
जो सुखी है माटी का ढेला !!२!!

प्रभु का जो करते हैं सुमिरन !
सुमिरन से जीवन है उपवन !
‘दास नारायण’ छोड़ झमेला !!३!!

तुम पीर हरो ब्रज के स्वामी


तुम पीर हरो ब्रज के स्वामी !
चलते-चलते पग मेरे हारे ,
कारण कौन भुलाये !
सदा रही है आस तुम्हारी ,
मारग कौन बताये !
कभी गिरा न भक्त वो तेरा
तुमने बांह जो थामी !!

चैन – रैन निस दिन खोवत है ,
नयनन आंसू आवे !
शमा करो अपराध हमारा,
बालक भटक ही जावे !
‘दास’ नारायण मुख न बोले ,
तुम हो अंतर्यामी !!

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